जिस प्रकार कुत्ता नीरस हड्डी का स्वाद लेता हुआ उसे चबाता हुआ -मुख के फट जाने से उसी मुख से उत्पन्न हुए रक्त में अपने को सुखी मानता है उसी प्रकार -कामी जन भी स्त्रियों के संभोग्वश होने वाली वीर्य की हानि से जो अपने शरीर में खेद होता है उससे उत्पन्न होने वाले सुख का अनुभव करते है। उनका यह विषय सुख उस कुत्ते के सुख के समान है जो कि कठोर हड्डी को चबाकर अपने ही मुख से निकलने वाले रक्त का आसंवादन करता हुआ अपने को सुखी समझता हैं।
यह सुभाषित रत्न संदोह पुस्तक शलोक 13 से लिया गया है।
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