Tuesday, July 7, 2009

क्रो़ध त्याग

1.जिसमें चोट पहुँचाने की शक्ति है,उसी में सहनशीलता का होना समझा जा सकता है। जिसमें शक्ति ही नहीं,वह क्षमा करे या न करे उससे किसी का क्या बनता -बिगड़ता है?
2.यदि तुम में प्रहार करने की शक्ति न भी हो,तब भी क्रोध करना बुरा है और यदि तुम्हें शक्ति हो,तब भी क्रोध से बढकर बुरा काम और कोई नहीं हैं।
3.तुम्हारा अपराधी कोई भी हो,पर उसके उपर कोप न करो,क्योंकि क्रोध से सैकड़ों अनर्थ पैदा होते है।
4.जो क्रोध के माने आपे से बाहर है,वह मरे हुए के समानहै,तथा जिसने कोप करना त्याग दिया है ,वह संतों के समान है।
5. यदि तुम भला चाहते हो , तो क्रोध से दूर रहो ;क्योंकि दूर न रहोगे ,तो वह तुम्हें आ दबोचेगा और तुम्हारा सर्वनाश कर डालेगा।
6. अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है ;परन्तु क्रोधाग्नि सारे कुटुम्ब को जला डालती है।

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