Friday, February 15, 2013








आज का विचार 15.2.2013 श्रीदिगंबर जैन मुनिसुव्रतनाथ मंदिर से.15पार्ट1 गुड़गाँव [हरियाणा]
गुनै: सर्वज्ञतुल्योपी सिदात्येको निराश्रय:
अनर्घ्यमपि माणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते

परम पूज्य श्रमण 108 श्री विशोक सागर जी मुनिराज ने आज 15.2.2013श्री दिगंबर जैन मुनिसुव्रतनाथ मंदिर गुड़गाँव [हरियाणा ] में कहा कि अमूल्य रत्न भी अपने आश्रय के लिए स्वर्ण को अपेक्षा करता है, सोने में मढ़े जाने पर ही रत्न को धारण किया जाता है, उसी प्रकार गुणों में परमात्मा की बराबरी करने वाला पुरुष भी किसी उपयुक्त आश्रय के अभाव में यश और प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर पाता.
कितना भी गुणी मनुष्य हो,सामाजिक प्राणी होने के नाते अकेला बिना सहारे के नहीं रह सकता. आरम्भ में वह माता-पिता का सहारा खोजता है,फिर साथियों का, पत्नी का,परिवार का. ये सभी सहारे अच्छे है, परन्तु इनमे से स्थायी एक भी नहीं. ये सारे सहारे बिछुड़ने वाले हैं. मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ सहारा तो परमात्मा का है. उसी के सहारे अपना उद्धार करना चाहिए.

परम पूज्य श्रमण 108 श्री विशोक सागर जी मुनिराज ससंघ श्री दिगंबर जैन मुनिसुव्रतनाथ मंदिर सेक्टर 15 पार्ट 1 गुडगाँव [हरियाणा ] में विराजमान है.
सम्पर्क सूत्र >08882597471,09728217916

No comments: