Wednesday, February 13, 2013






आज का विचार 13.2.2013 श्रीदिगंबर जैन मुनिसुव्रतनाथ मंदिर से.15पार्ट1 गुड़गाँव [हरियाणा]
विवेकिनमनुप्राप्ता गुणा यान्ति मनोज्ञताम
सुतराम रत्नमाभाती चामीकरनियोजितम 

परम पूज्य श्रमण 108 श्री विशोक सागर जी मुनिराज ने आज 13.2.2013श्री दिगंबर जैन मुनिसुव्रतनाथ मंदिर गुड़गाँव [हरियाणा ] में कहा कि गुण अपने को धन्य मानने लगते हैं,क्योंकि इसी में ही उन्हें अपनी सार्थकता प्रतीत होती है. उदाहरणार्थ सोने में जड़ा हुआ रत्न ही अपूर्व शोभा को प्राप्त करता है.
जिस प्रकार सोने में मढ़ा रत्न चमकता है,उसी प्रकार विचारवान के पास पहुंचे गुणों में ही निखार आता है.

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