Sunday, October 4, 2009

विषय विचारैक विन्शंतीं

जिनकी विषय भोगों (सांसारिक इन्द्रिय सुखों ) की इच्छा नष्ट हो चुकी है उनको जो यहाँ सुख प्राप्त होता है वह न तो इन्द्रों को प्राप्त हो सकता है और न चक्रवर्तियों को भी। इसलिए मन में अतिशय प्रीति धारण करके जो विषयरूप शत्रु परिणाम में अहितकारक हैं उनको छोड़ो और धर्म का आराधन करो
यह सुभाषित रत्न संदोह पुस्तक शलोक दस से लिया गया है

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