Friday, November 16, 2012


 कर्मायत्तम फलं पुंसाम बुद्धि: कर्मानुसारिणी
 तथापि  सुधियाश्चार्या:  सुविचाय्रैव     कुर्वते
 
कर्म फल के अधीन रहता, है मनुष्यों की बुद्धि कर्म के अनुसार ही चलती है, फिर भी विद्वान और सज्जन भली-भांति सोच-विचार करके ही कार्य करते हैं.
मनुष्य जैसा कार्य करता है उसके विचार, उसकी बुद्धि उसकी भावनाएं वैसी ही बन जाती हैं. मनुष्य को सोच-विचार कर ही कार्य करना चाहिए.
18-11-2012 दिन रविवार दोपहर 12.30 बजे 
परम पूज्य 108 श्रमण श्री विशोक सागर जी मुनिराज ससंघ का

 भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह 
                 स्थान -श्री दिगम्बर जैन पारसनाथ मंदिर, मुख्य बाजार, बस्सी [जयपुर ] राज.
                   विशेष जानकारी के लिए संपर्क करे-09772726121

2 comments:

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