मना गया
तृतीय पट्टाधीश तपस्वी सम्राट, महातपोमर्तांड आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज का ८वाँ समाधि दिवस पर।
परम पूज्य राष्टसंत गणार्चाय श्री108विरागसागर जी महाराज
के मंगल आर्शीवाद से परम शिष्य
श्रमण मुनिश्री108 विशोकसागर जी महाराज के एंव श्रमण मुनिश्री108 विधेयसागर जी महाराज का इटावा जैन मंदिर में विराजमान हैं. मुनि संघ के सानिध्य में हो रहे कार्यक्रम की श्रंखला में प्रातः काल की बेला में श्री का अभिषेक एवं शांति धारा , गूरुदेव की पूजन मुनिसंघ का पादप्रक्षालन शास्त्र भेट किया गणमान्य व्यक्तियो ने किया। मंगाचरण इटावा जैन की मंदिर की पाठ शाला की बहिनों के द्वारा श्रेया ,प्राची ,अनमोल जैन ने किया। पूजन प्रदीप जैन (टोपी) ने के ने करवाई
मुनि विधेय सागर जी महराज अपनी मधुर आवाज में गूरु महिमा का किया गुणगान ।
सम्राट आचार्य श्री 108 सन्मति सागर जी महाराज समाधि दिवस मनाया जाएगा।
सभा मे उपस्थित
समीति के अध्यक्ष बंसत जी सिंघई मंत्री एवं जी संदीप कठरया जी ,राजेन्द्र. जैन संदीप सिंघई मुकेश जैन टिल्लू बुखारिया ,राकेश सराफ , सुनील जैन ,ब्बलू भानगढ़ अजय बुखारिया, पंडित निहालचंद्र जी शास्त्री जी पंडित अभय जी शास्त्री जी सलिल बकील जैन राजेश शाह , चंदा चाचाजी, कांता चाची महिला मंडल आदि एवं नाभिनंदन हितोपदेशनी सभा एवं सकल दिगम्बर जैन समाज उपस्थित रहे।
मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज ने ऑज गूरुणांम गूरु
*परम पूज्य तपस्वी सम्राट आचार्य श्री 108 सन्मतिसागर जी मुनिराज - गजब का व्यक्तित्व !!* बारे में बताया कि
गुरुदेव श्री 108 आचार्य सन्मतिसागर महाराज भोजन नहीं करते थे. वे 48 घंटो में एक बार मट्ठा और पानी लेते थे.आपने आचार्य 108 महावीर कीर्ति जी महाराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लेते ही नमक का त्याग कर दिया . सन 1961 में (मेंरठ ) में आचार्य विमलसागर महाराज से छुलक दीक्षा लेतेही दही,तेल व घी का त्याग कर दिया था.सन 1962 में मुनि दीक्षा लेते ही आपने शकर का भी त्याग कर दिया सन 1963 में आप ने चटाई का भी त्याग कर दिया और 1975 में आपने अन्न का भी त्याग कर दिया. सन 1998 में उन्होंने दूधका भी त्याग कर दिया. सन 2003 में उदयपुर में मट्ठा और पानी का अलावा सबका त्याग कर दिया. उन्होंने रांची में 6 माह तक और इटावा में 2 माह तक पानी का भी त्याग किया. उन्होंने अपने एक चातुर्मास में 120 दिनों में केवल 17 दिन आहार लिया.दमोह चातुर्मास में उन्होंने एक आहार एक उपवास फिर दो उपवास एक आहार तीन उपवास एक आहार .........इस तरह बढते हुए, 15 उपवास एक आहार, 14 उपवास एक आहार, 13 उपवास एक आहार ,...........से करतेकरते एक उपवास एक आहार, तक पहुच कर सिंहनिष्क्रिदित महा कठिन व्रत किया. उन्होंने अपने 49 साल के तपस्वी जीवन में लगभग 9986 उपवास किये. लगभग 27.5 सालो से भी अधिक उपवास किये.आपके बारे में आचार्य 108 पुष्पदंत सागर महाराज ने यहाँ तक कहा है की महावीर भागवान के बाद आपने ने इतनी तपस्या की है. सन1973 में उन्होंने शिखरजी की निरंतर 108 वंदना की थी.वे भरी सर्दियों में भी चटाई नहीं लेते थे. गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चार घंटे ही विश्राम करता थे. वे पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे.उन्होंने समाधी से 3 दिन पहले उपवास साधते हुए लोगो का कहने का बावजूद आपना आहार नहीं लिया. अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-10 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया. और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-10 को आँखों से छोड़ दिए. ऐसे तपस्वी सम्राट को मेरा कोटि कोटि नमन....।🙏🏻
🚩 *पूज्य गुरुदेव के सप्तम समाधि स्मृति दिसव के अवसर पर
गुरुदेव के चरणों मे शत् शत् नमन नमन...*🙏🏻
ऑज सकल बीना जैन समाज ने पूज्य मुनि श्री के ससंघ चरणों में शीतकालीन वाचना के लिए श्री फल भेट करके श्री वाचना के लिए निवेदन किया।
संध्या काल मे गूरूभक्ति प्रशन मंच एवं महाआरती का आयोजन भी किया गया।
🙏🏻
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