Sunday, November 12, 2017
12, 2017 दूसरों को प्रसन्नता वितरित करने में ही जीवन की सफलता निहित है। मुनि श्री विशोक सागर जी खनियाधाना। हमारे अन्दर राग और कषाय के भाव भरे पड़े हैं। जब तक हम इन्हें दूर नहीं करेंगे, वैराग्य की प्राप्ति संभव नहीं है। राग का पूरी तरह अभाव होने के बाद ही वैरागी का मार्ग प्रारम्भ होता है। नगर के बडे मन्दिर जी मे विराजमान आचार्यश्री विराग सागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विशोक सागर जी मुनि श्री विधेय सागर जी महाराज आज मुनि श्री विशोक सागर महाराज जी ने आज पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन बडे मन्दिर जी मे केशलोंच किय। मुनि श्री विशोक सागर जी ने प्रवचन मे कहा राग अपने को रुलाता है और द्वेष दूसरों को | रोना किसे अच्छा लगता है ? किसीको नहीं; तब भला रुलाना क्यों अच्छा लगना चाहिये ? हँसने-हँसाने में अर्थात् स्वयं प्रसन्नचित्त रहने और दूसरों को प्रसन्नता वितरित करने में ही जीवन की सफलता निहित है जीवन की इस सफलता के मार्ग में राग और द्वेष सबसे बड़े रोड़े हैं, जिन्हें हटाना जरूरी है| राग से हमें अपने दोष नहीं दीखते और द्वेष से दूसरों के गुण नहीं दिखते| इस प्रकार राग के कारण हम अपना सुधार नहीं कर पाते और द्वेष के कारण दूसरों से सद्गुण सीख नहीं पाते| इसलिए रागद्वेष का जितना भी हो सके क्षय करने का भरपूर प्रयास करना चाहिये| रागद्वेष के क्षय से ही मोक्ष प्राप्त होता है – वह मोक्ष, जो एकान्त सुखस्वरूप है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment