Monday, October 18, 2010





























































































































































































































































































































































4 comments:

Kishore Kumar Jain said...

नमोस्तु पहाराज जी ,आपके चरणों में शत् शत् वंदन।गृहस्थ से सन्यास की और बढना को विरला ही कर पाता है। सबसे बङी बात है सब कुछ होते हुए भी अपने तन के वस्त्र भी त्याग देना............ऐसा पूण्यशाली ब्यक्तित्व ही कर सकता है। कंटक भरे मार्ग से चलकर अपने उपदेशों से भक्तों को सत्पथ पर चलने का मार्ग दिखाना आप जैसे त्यागी ब्रतीयों के ही वस का है. पुनः नमोस्तु
किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम

नरेन्द्र भारती said...

How can I post my Hindi comment in Devnagari script?

Narendra Vasal
vasalji@gmail.com

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

सुन्दर रहा ये सब दर्शन ..मुनिवर की जयकार ...दुनिया में कुछ भी नहीं है ....
भ्रमर ५

Anonymous said...

क्या दिगंबर जैन मैं महिला साध्वी नहीं है?
यदि उपलब्ध है, तो वे कैसे इस दुनिया में जीवित है?

मैं उन्हें अभी तक नहीं देखा है!