Tuesday, June 16, 2009

मुनि श्री विशोक सागर जी के अमृतमय वचन

1.सांसारिक दौड़ का अंत दीक्षा है।
2.अपने भूले हुए स्वरूप को तलाशने का नाम दीक्षा है।
3.जीवन को सम्यक विचार पूर्वक दिशा को प्राप्त होने का नाम दीक्षा है।
4.जीवन को भोगों से छुड़ाकर योगों में ले जाने की प्रक्रिया का नाम दीक्षा है।
5.गुरु चरणों में सम्पूर्ण समर्पण कर देने का नाम दीक्षा है।

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