Friday, May 15, 2009

गृहस्थाश्रम

1.पूर्वजों की कीर्ति की रक्षा,देवपूजन,अतिथि -सत्कार,बंधु -बान्धवों की सहायता और आत्मोन्नति-ये गृहस्थ के पाँच कर्म है।
2.जो बुराई से डरता है और भोजन करने से पहले दूसरों को दान देता है,उसका वंश कभी निर्बीज नहीं होता।
3.यदि मनुष्य घर के सब कर्तव्यों का उचित रूप से पालन करे,तब उसे दूसरे आश्रमों के धर्मों को पालने की क्या आवश्यकता है ?
4.जो गृहस्थ दूसरे लोगों को कर्तव्य पालन में सहायता देता है और स्वयं भी धार्मिक जीवन व्यतीत करता है,वह ऋषियों से अधिक पवित्र है।
5.सदाचार और धर्म का विवाहित जीवन से सम्बन्ध है और सुयश उसका आभूषण है।
6.जो गृहस्थ उसी तरह आचरण करता है,जिस तरह कि उसे करना चाहिए,तो वह मनुष्यों में देवता समझा जाएगा।

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